बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 हिन्दी बीए सेमेस्टर-4 हिन्दीसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 हिन्दी - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 1
अनुवाद की अवधारणा एवं प्रकार
आज के हिंसक वैश्विक समाज में शांति तथा प्रगति की भी जीवनधर्मी अवधारणा के आदान- प्रदान के लिए, अपनी अनिवार्य उपस्थिति दर्ज करा चुका अनुवाद आवेग त्वरित काल यात्री की तरह इस धरती पर अनथक यात्रा कर रहा है। सृजन की इस महत्त्वपूर्ण विधा अनुवाद ने सतत् गतिमान-गतिशील रहते हुये विश्व को अपने से पार देखने का निरन्तर हौसला और संदेश दिया है, अशांत समाज में शान्ति का बिरवा रोपा है और समझाया है कि ग्लोबल समाज एक-दूसरे के सरोकार के लिए कितना अर्थपूर्ण है। अनुवाद को लोग भले ही दूसरी कतार का काम मानें, लेकिन इसका काम संपूर्ण विश्व को उत्तम अवधारणाओं की महासागरीय धारा से जोड़ना है। कुल मिलाकर समग्रता में देखें तो कह सकते हैं कि हर युग के परिदृश्य में, हर उठा-पटक, हर तरह की वर्जनाओं और निषेधों को तोड़ अनुवाद ने विश्व में सह-अस्तित्व की आश्वस्तिकार मिसाल स्थापित की है। इसने निरन्तर दो भिन्न भाषा भावी में सह-अस्तित्व की आश्वस्तिकार मिसाल स्थापित की है। इसने निरन्तर दो भिन्न भाषा-भावी व्यक्तियों, समुदायों-समाजों को जोड़ा है, अतः इसकी महत्ता विश्व समुदाय के लिए असंदिग्ध है। अपनी इस भूमिका में यह आज भी जी रहा है और कालान्तर में भी जिएगा।
19वीं शताब्दी में हिन्दी में काफी अनुवाद किये गये। हिन्दी में मुख्य रूप से संस्कृत बंगला, अंग्रेजी तथा मराठी नाटकों, कहानियों, उपन्यासों, काव्यों तथा निबन्धों के अनुवाद किए गए। नाटकों में प्रबोध चन्द्रोदय, हनुमन्नाटक, मुद्राराक्षस, शकुन्तला, मालती माधव, उत्तर रामचरितम्, रत्नावली, कर्पूर मंजरी, कुंदमाला, मृच्छकटिक, मर्चेन्ट ऑफ वेनिस, ऐज यू लाइक इट, मैकबेथ, ओथेलो, हेमलेट, ली बर्जिस गतील हामे, जैसे सैकड़ों ग्रन्थों के हिन्दी में अनुवाद किये गये तो, कविताओं में पोप, मिल्टन, शेली, वायरन, बर्ड्सवर्थ, कीट्स, टेनिसन तथा गोल्डस्मिथ की श्रेष्ठ काव्य पंक्तियाँ अनूदित की गयी। इसी तरह गणित, अर्थशास्त्र, कृषि, इन्जीनियरिंग, भौतिकशास्त्र, जीवविज्ञान, रसायन, राजनीति विज्ञान, भाषा-विज्ञान, काव्यशास्त्र, इतिहास तथा समाज शास्त्र, जैसे विषयों में भी हिन्दी अनुवाद हुए।
कालान्तर में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, लल्ली प्रसाद पाण्डेय, देवी प्रसाद पुणे, रामधारी सिंह दिनकर, बच्चन, डॉ. रांगेय राघव, राहुल सांकृत्यायन, भदंत आनन्द कौसल्यायन, जगमोहन सिंह, श्रीधर पाठक, मिश्र बन्धु, जगन्नाथ दास रत्नाकर तथा इधर पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अनुवाद विधा को पुष्टपीन बनाया है। यही नहीं अब भी ढेरों कृतियों के अनुवाद हिन्दी में सतत् जारी हैं और जारी रहेंगे। इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय अनुवाद चिंतन पश्चिम की तुलना में काफी उत्पन्न और ठोस हुआ है।
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